किसी का भी धर्म आज से पहले ख़तरे में नहीं था, फेसबुक-ट्विटर-वॉट्स एप या सोशल मीडिया के आने से पहले तो बिलकुल भी नहीं. इन सबके आने के बाद जिन लोगों को धर्म से कोई लेना-देना नहीं था और जो धर्म की बारहखड़ी भी नहीं जानते हैं, उन्हें भी ये पता चल गया कि धर्म ख़तरे में है. सोशल मीडिया पर एक आपत्तिजनक फोटो या किसी धर्म के खिलाफ़ कमेन्ट साम्प्रादियक तनाव भड़काने के लिए काफ़ी होता है और इस तनाव के चलते हिंसा भी हो जाये तो समझिये कमेन्ट ने हक़ अदा कर दिया. क्या धर्म इतना कमज़ोर हो गया है कि किसी ने वर्चुअल दुनिया में उसे फूँक मारी तो उसका अस्त्तित्व ख़तरे में आ गया? इंसान का कान अगर कौआ ले जाता है तो इंसान पहले दो बार कान में हाथ लगाकर तस्दीक करता है कि वाक़ई में ऐसा हुआ है या नहीं. हर गली-नुक्कड़-चौराहे में ऐसे सैंकड़ों लोग हैं जो बेवजह खड़े होकर चिल्लाते रहते हैं कि भाईसाहब, कौआ आपका कान ले गया और वो भी यही चाहते हैं कि आप कौआ के पीछे दौड़ें न कि कान टटोलें. खैर, सोशल मीडिया को देखकर कभी-कभी वाक़ई में लगता है कि धर्म ख़तरे में हैं. इसके पीछे एक और कारण है. आप देखिये आपको धर्मों पर आधारित कई पेज और ग्रुप मिल जायेंगे, जो आपको आपके धर्म का वास्ता देकर कहेंगे कि इसे शेयर करो, लोगों तक पहुंचाओं. कुछ जगहों पर सर्वधर्म शान्ति और एकता के नाम पर लोग अपने-अपने धर्मों की श्रेष्ठता का बखान करने में लगे रहते हैं. वो अन्य धर्मों से क्यों अच्छा है ये भी बताएँगे. लेकिन अपने धर्म को श्रेष्ठ और गरिमामय बनाए रखने के लिए असल ज़िन्दगी में वो शायद ही कुछ करते हों. असल ज़िन्दगी में तो वे लोग ट्रेफ़िक सिग्नल की रेड लाइट को भी क्रॉस करके निकल जाते हैं, नो पार्किंग में गाड़ी लगाते हैं, किसी के ऊपर हो रहे अन्याय को चुपचाप देखते रहते हैं, यहाँ तक कि ख़ुद पर भी अगर अन्याय हो रहा हो तो भी पुतले की भांति व्यवहार करते हैं. आप ही बताईये, कौन सा धर्म है जो कानून तोड़ने के लिए बाध्य करता है? कौन सा धर्म है जो अन्याय सहने का समर्थन करता है? आप ऐसे लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं जो अपने धर्म को बड़ा तो कहते हैं लेकिन ख़ुद उसकी बातों पर अमल नहीं करते. ऐसे लोगों को देखकर दूसरे भी वैसा ही करते हैं. आप उन्हें टोक भी नहीं सकते क्योंकि ऐसा करने पर आपको टका सा जवाब मिलेगा - उसको देखो वो भी वैसा ही कर रहा है. कुल-मिलाकर आप ये कह सकते हैं कि ये दुनिया धर्मविहीन, अराजक लोगों से भरी पड़ी है. जिन्हें भीड़ में शामिल होकर हूटिंग करने में मज़ा आता है. भीड़ में ये लोग सुरक्षित रहते हैं. यही लोग जब सोशल मीडिया में आते हैं तो खुदको किसी नकली पहचान में छुपा लेते हैं. इन नकली लोगों की क्रिया पर असली लोग आये दिन सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक प्रतिक्रया देने में चूकते नहीं हैं और ये दोनों तरह के लोग सोशल मीडिया की आत्मा को साम्प्रदायिकता के रंग में रंगने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
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