कॉर्पोरेट लाइन में
फ्रेशर्स तो आपने सुने ही होंगे, जी हाँ वही फ्रेशर्स जो अपने नए जॉब को सिर-माथे
से लगाकर कर रखते हैं. ओवरटाइम मिले न मिले, लेकिन वो ज़रूर देर तक काम करते मिल
जायेंगे. बॉस की हर आज्ञा का पालन करना इनका सर्वोपरि धर्म होता है. ये अपनी पहली
जॉब को ही आख़िरी जॉब की तरह समझने लगते हैं. हालाँकि जीवन में कुछ भी आख़िरी नहीं
होता जब तक कि जीवन का अंतिम दिन सामने न आ जाए. खैर, सीखने की ललक जो न करवाए वो
कम है. वैसे कॉर्पोरेट की तरह प्रेम में भी फ्रेशर्स होते हैं. इन्हें आपने गाते
हुए भी सुना होगा “मेरा पहला-पहला प्यार है ये”. पहली बार प्रेम में पड़ने का अवसर
किसी को स्कूल में, किसी को कॉलेज में तो किसी-किसी को शादी के बाद ही नसीब होता
है. देखा जाए तो फ्रेशर्स प्रेमी और पहला नया मोबाइल ख़रीदने वाले कस्टमर में ज़्यादा
अंतर नहीं होता. क्योंकि नया-नया प्यार भी नये मोबाइल लेने की फ़ीलिंग जैसा होता
है. आप शीघ्र-अतिशीघ्र उसके सारे फ़ीचर्स एक्सप्लोर कर लेना चाहते हैं. आपकी
सुबह-दोपहर-शाम-रात सब कुछ उस मोबाइल के साथ या उसके बारे में सोचते हुए ही होती
है. वो हर वक़्त आपके पास ही रहता है, भूल से अगर वो इधर-उधर हो जाए तो बेचैनी सी
होने लगती है. कोई बड़ी बात नहीं है कि दिन में कई दफ़ा आप उसकी स्क्रीन अपनी शर्ट
के बाज़ू से पोछते हुए पकड़े जाएँ. सबसे अहम् बात, आप अपना नया मोबाइल किसी के भी
हाथ में देने से क़तराते हैं. आपको उससे इतना लगाव हो जाता है कि आप उसका साथ छोड़ने
के बारे में सपने में भी नहीं सोचते. लेकिन कब तक??? अगला मोबाइल आने तक या इस
मोबाइल के डेमेज होने तक? एक बार कोई भी चीज़ अनपैक होती है न तो याद रखिये कितना
भी झाड़-पोंछ लो वो पुरानी पड़ ही जाती है. आप भी उसके सारी फ़ीचर्स एक्सप्लोर करने
के बाद कुछ नया करने की तलाश में लग जाते हैं. हालाँकि पहला मोबाइल खोने-टूटने-गुमने
का झटका बहुत करारा होता है. अगर आपसे आपके पहले मोबाइल के बारे में पूछा जाए तो
आप उसकी कंपनी और कलर दोनों बता देंगे. अगले दो-तीन दफ़ा मोबाइल बदलने के बाद आपकी सारी
आदतें लगभग बदल सी जाती हैं. क्योंकि आपको अनुभव हो चुका है, आप जानने लगते हैं कि
लगाव ही आपके दुःख का कारण है. इसलिए आप केज़ुअली बिहेव करने लगते हैं. फिर प्रेम
में आपका ग्राफ़ वक़्त के साथ-साथ धीर-धीरे प्रोग्रेस करता है. क्योंकि जल्दबाज़ी के
सारे नुक्सान आप पहली ही उठा चुके होते हैं. 4-5 प्रेम प्रसंगों के बाद तो हालात
काफ़ी बदल जाते हैं. ठीक वैसे जैसे कॉर्पोरेट में, क्योंकि चार-पांच साल बाद तो आप मैनेजर
लेवल पर पहुँच जाते हैं. तब आप एक प्रोफ़ेशनल की तरह संयमित और पंक्चुअल हो
जाते हैं. यानि आपको गीता-ज्ञान प्राप्त हो चुका होता है. आप समझ जाते हैं कि
परिवर्तन संसार का नियम है. तुम जिसे अपना समझकर ख़ुश हो रहे हो बस वही तुम्हारे
दुःख का कारण है. इस संसार में सब-कुछ नश्वर है. इतना ज्ञान प्राप्त होने के बाद
आप स्वयं में एक “बहरूपिया” हो जाते हैं. आप जानते हैं कि आपको कब और किस क़िरदार
में कौन सा रिएक्शन कितनी मात्रा में देना है. इस दक्षता को प्राप्त करने में आपने
काफ़ी समय दिया होता है. कुछ लोग पूरा जीवन लगाकर भी प्रेम के आर्ट को नहीं समझ
पाते और सिर्फ इसके साइंस में ही उलझकर रह जाते हैं. दक्षता का स्तर प्राप्त करने
से पहले कोई भी अनुभवी एक समय में फ्रेशर ही रहा होता है. फ्रेशर से दक्ष होने का
सफ़र काफ़ी जोख़िम भरा होता है. ये सफ़र भी जीवन का एक अहम् हिस्सा है. सभी को इस सफ़र
की शुरुआत कभी न कभी करनी ही पड़ती है... अब आप बताईये, आप जोख़िम लेना कब शुरू
करेंगे???
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