कुछ दिनों पहले यूँ ही चलते-फिरते मैं सेना के कुछ खिलाड़ियों से मिला था. दोनों ही खिलाड़ी "हैम्स्ट्रिंग" नामक इंज्यूरी से ग्रस्त थे. इंज्यूरी के बावजूद भी दोनों आयोजन का हिस्सा बनकर अपने-अपने खेलों की प्रतियोगिता में बेहतर प्रदर्शन करना चाह रहे थे. दोनों के जज़्बात काबिल-ए-तारीफ़ थे. ये पूरा आयोजन अगले स्तर के चयन के लिए हो रहा था. सबसे अंतिम पड़ाव में राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता होगी, जिसका हिस्सा सेना के तमाम रेजीमेंट्स और जवान होंगे. इस आयोजन में बहुत सारे जवान हिस्सा ले रहे हैं, ज़्यादातर जवान इसी इंज्यूरी से पीड़ित हैं, उनकी देख-भाल के लिए आयोजन के दौरान एक फ़िज़िओथेरेपिस्ट वहां मौजूद रहेगा. उसकी सेवाएँ सिर्फ आयोजन के दौरान ही ली जायेंगी. ज़्यादातर शहरों में सेना के पास स्थायी तौर पर फ़िज़िओथेरेपिस्ट नहीं होते. उन्हें कुछ अवधि के लिए रखा जाता है. वैसे "हैम्स्ट्रिंग" जैसी इंज्यूरी को एक बार के ट्रीटमेंट से ठीक नहीं किया जा सकता. फिर आयोजन के वक़्त इस तरह की खानापूर्ती करके आयोजनकर्ता क्या साबित करना चाहते हैं?ये किस तरह की स्पोर्ट्समैनशिप है कि चोटग्रस्त या यूँ कहें कि सभी चोटग्रस्त धावकों को दौड़ाया जा रहा है?विशेषज्ञों के मुताबिक़ जो धावक ऐसे ट्रैक पर प्रैक्टिस करते हैं जहाँ टर्फ नहीं है, उन्हें इस इंज्यूरी का सामना करना पड़ सकता है. यहाँ भी वही हो रहा है क्योंकि ज़्यादातर धावक एक ही इंज्यूरी से पीड़ित हैं. चोटग्रस्त होते हुए भी ये सभी अपना बेहतर से बेहतर प्रदर्शन देना चाहते हैं. आगे जाकर इनमें से ही कुछ खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व भी करते हैं. भारत में खेल और खिलाड़ियों की स्थिति कैसी है, इससे सभी वाकिफ हैं. क्या इन खिलाड़ियों को शुरुआत से ही अच्छी सुविधायें मुहैया कराना शासन की ज़िम्मेदारी नहीं है. रक्षा विभाग हो या फिर अन्य कोई सामान्य विभाग, खेल और खिलाड़ियों के मामले में पारदर्शिता क्या ज़रूरी नहीं है? ऐसे मामलों में सरकार या जनप्रतिनिधियों का हस्तक्षेप कितना है? मीडिया भी ऐसे मामलों में दखल नहीं दे सकता. तो फिर जवाबदेही कौन तय करेगा? खेल-खेल में कौन सा खेल चल रहा है? क्यों अच्छे भले धावकों को लंगडा घोड़ा बनाया जा रहा है? फिर क्यों उनसे दौड़ने और जीतने की उम्मीद की जाती है? हो सकता है जायज़ सवालों का कोई जवाब न मिले लेकिन इस तरह से सवाल उठाने का मुँहतोड़ जवाब देने कोई न कोई ज़रूर आएगा. ऐसी मुझे उम्मीद है...इस तरह कहीं से तो शुरुआत होगी.
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